खरे शोधिता शोधिता शोधताहे | मना बोधिता बोधिता बोधताहे |
परी सर्वही सज्जनाचेनि योगे | बरा निश्चयो पाविजे सानुरागे ||151||
बहूता परी कूसरी तत्वझाडा | परी पाहिजे अंतरी तो निवाडा |
मना सार साचार तें वेगळे रे | समस्तांमधे येक ते आगळे रे ||152||
नव्हे पिंडज्ञाने नव्हे तत्वज्ञानें | समाधान कांही नव्हे तानमानें |
नव्हे योगयागे नव्हे भोगत्यागें | समाधान ते सज्जनाचेनि योगें ||153||
महावाक्य तत्वादिकें पंचकर्णें| खुणे पाविजे संतसंगें विवर्णें|
द्वितीयासि संकेत दो दाविजेतो| तया सांडुनी चंदःमा भाविजेतो ||154||
दिसेना जनी तेचि शोधूनि पाहे | बरे पाहता गूज तेथेचि आहे |
करी घेउ जाता कदा आढळेना | जनी सर्व कोंदाटले तें कळेना ||155||
म्हणे जाणता तो जनी मूर्ख पाहे | अतर्कासि तर्की असा कोण आहे |
जनी मीपणे पाहता पाहवेना | तया लक्षिता वेगळे राहवेना ||156||
बहू शास्त्र धुंडाळिता वाढ आहे | जया निश्र्चयो येक तोही न साहे |
मती भांडती शास्त्रबोधे विरोधे | गती खुंटती ज्ञानबोधे प्रबोधे ||157||
श्रुती न्याय मीमांसके तर्कशास्त्रे | स्मृती वेद वेदांतवाक्ये विचित्रे |
स्वये शेष मौनावला स्थिर पाहे | मना सर्व जाणीव सांडून राहे ||158||
जेणे मक्षिका भक्षिली जाणिवेची | तया भोजनाची रूची प्राफ्त कैंची |
अहंभाव ज्या मानसींचा विरेना | तया ज्ञान हे अन्न पोटी जिरेना ||159||
नको रे मना वाद हा खेदकारी | नको रे मना भेद नाना विकारी |
नको रे मना शिकऊ पूढिलांसी | अहंभाव जो राहिला तूजपासी ||160||
– श्री रामदासस्वामी लिखित मनाचे श्लोक (क्रमशः)
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