जया नावडे नाम त्या येम जाची | विकल्पे उठे तर्क त्या नर्क ची ची |
म्हणोनि अती आदरे नाम घ्यावे | मुखे बोलता दोष जाती स्वभावे ||101||
अती लीनता सर्वभावे स्वभावे | जना सज्जनालागि संतोषवावे |
देहे कारणी सर्व लावीत जावे | सगूणी अती आदरेसी भजावे ||102||
हरीकीर्तने प्रीति रामी धरावी | देहेबुध्दि नीरूपणी वीसरावी |
परदव्य आणीक कांता परावी | यदर्थी मना सांडि जीवी करावी ||103||
क्रियेवीण नानापरी बोलिजेते | परी चित दुश्र्चित ते लाजवीते |
मना कल्पना धीट सैराट धांवे | तया मानवा देव कैसेनि पावे ||104||
विवेके क्रिया आपुली पालटावी | अती आदरे शुध्द क्रिया धरावी |
जनीं बोलण्यासारिखे चाल बापा | मना कल्पना सोडि संसारतापा ||105||
बरी स्नानसंध्या करी एकनिष्ठा | विवेके मना आवरी स्थानभ्रष्टा |
दया सर्व भूती जया मानवाला | सदा प्रेमळू भक्तीभावे निवाला ||106||
मना कोप आरोपणा ते नसावी | मना बुध्दि हे साधुसंगी वसावी |
मना नष्ट चांडाळ तो संग त्यागी | मना होइ रे मोक्षभागी विभागी ||107||
सदा सर्वदा सज्जनाचेनि योगे | क्रिया पालटे भक्तीभावर्थ लागे |
क्रियेवीण वाचाळता ते निवारी | तुटे वाद संवाद तो हीतकारी ||108||
जनी वादवेवाद सोडूनि द्यावा | जनी सूखसंवाद सूखे करावा |
जगी तोचि तो शोकसंतापहारी | तुटे वाद संवाद तो हीतकारी ||109||
तुटे वाद संवाद त्याते म्हणावे | विवेके अहंभाव याते जिणावे |
अहंतागुणे वाद नानाविकारी | तुटे वाद संवाद तो हीतकारी ||110||
– श्री रामदासस्वामी लिखित मनाचे श्लोक (क्रमशः)
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