याद आयी दिया जब जलाया
लौ की सूरत समय थरथराया
खुशबू आती है शब्दो से मेरे
तेरी आवाज का जैसे साया
चाँदनी थी मेरे पीछे पीछे
कैसे सूरज ने मुझको सताया
जो हुआ सो हुआ सोचकर ये
हमने माजी को अपने भुलाया
हमको जिस पल गिला था समय से
वो ही पल लौटकर फिर न आया
हो तुझे जीत अपनी मुबारक
अपनी बाजी तो मै हार आया
— प्रदीप निफाडकर
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