मनाचे श्लोक – १७१ ते १८०
असे सार साचार ते चोरलेसे | इही लोचनी पाहता दृश्य भासे | निराभास निर्गूण ते आकळेना | अहंतागुणे कल्पिताही कळेना ||171|| स्फुरे विषयी कल्पना ते अविद्या | स्फुरे ब्रध् रे जाण माया सुविद्या | मुळी कल्पना दो रूपे तेचि जाली | विवेके तरी सस्वरूपी मिळाली ||172|| स्वरूपी उदेला अहंकार राहो | तेणे सर्व आच्छादिले व्योम पाहो […]