मनाचे श्लोक – १५१ ते १६०
खरे शोधिता शोधिता शोधताहे | मना बोधिता बोधिता बोधताहे | परी सर्वही सज्जनाचेनि योगे | बरा निश्चयो पाविजे सानुरागे ||151|| बहूता परी कूसरी तत्वझाडा | परी पाहिजे अंतरी तो निवाडा | मना सार साचार तें वेगळे रे | समस्तांमधे येक ते आगळे रे ||152|| नव्हे पिंडज्ञाने नव्हे तत्वज्ञानें | समाधान कांही नव्हे तानमानें | नव्हे योगयागे […]