देख मेरे संसारकी हालत
क्या हो गयी भगवान
मेरेही घरमें मै मेहेमान,
सूरज न बदला, चॉद ना बदला,
ना बदला रे आसमान
देखो वो कैसी है अकडती,
बात बात पर मुझसे झगडती,
देरसे आऊॅ दफ्तरसे तो
देती ना वो ध्यान, बिबिकी…..
मांसे तू-तू-मै-मै करती
उसका बदला मुझसे लेती,
रातरातभर पीठ दिखाकर
करती वो हैरान, बिबिकी……
योगा-पार्लर, जीम भी जाती,
पर कमरका कमरा रोक न पाती,
हे दाता अब तू भी
कुछ ऐसी करदे करनी,
बदलके मेरे बिबिको भेजो
शीला या मुन्नी
भेजो शीला या मुन्नी
— सौ. अलका वढावकर
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