V-542
आळसे सुख मानो नये। चाहाडी मनास आणू नये। कार्य काही सुखा आंग देऊ नये। कष्ट करिता त्रासू नये। निरंतर — समर्थ रामदास स्वामी
आळसे सुख मानो नये। चाहाडी मनास आणू नये। कार्य काही सुखा आंग देऊ नये। कष्ट करिता त्रासू नये। निरंतर — समर्थ रामदास स्वामी
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