भजाया जनी पाहता राम येकु | करी बाण येकु मुखी शब्द येकु |
क्रिया पाहता उेरे सर्व लोकू | धरा जानकीनायकाचा विवेकु ||131||
विचारूनि बोले विवंचूनि चाले | तयाचेनि संतत्प तेही निवाले |
बरे शोधिल्याविण बोलो नको हो | जनी चालणे शुे नेमस्त राहो ||132||
हरीभक्त वीरक्त विज्ञानरासी | जेणे मानसीं स्थापिले निश्चयासीं |
तया दर्शनें स्पर्शनें पुण्य जोडे | तया भाषणें नष्ट संदेह मोडे ||133||
नसे गर्व आंगी सदा वीतरागी | क्षमा शांति भोगी दयादक्ष योगी |
नसे लोभ ना क्षोभ ना दैन्यवाणा | इंही लक्षणी जाणिजे योगिराणा ||134||
धरी रे मना संगती सज्जनाची | जेणे वृति हे पालटे दुर्जनाची |
बळे भाव सद्बुेि सन्मार्ग लागे | महाक्रूर तो काळ विक्राळ भंगे ||135||
भये व्यापिले सर्व ब्रह्मांड आहे | भयातीत ते संत आनंत पाहे |
जया पाहता द्वैत कांही दिसेना | भय मानसी सर्वथाही असेना ||136||
जिवा श्रेष्ठ ते स्पष्ट सांगोनि गेले | परी जीव अज्ञान तैसेचि ठेले |
देहेबुेिचे कर्म खोटे टळेना | जुने ठेवणे मीपणे आकळेना ||137||
भ्रमे नाडळे वित ते गुफ्त जाले | जिवा जन्मदारिद ठाकूनि आले |
देहेबुेिचा निश्र्चयो ज्या टल्íना | ठ्ठजुने ठेवणे मीपणे आकळेना ||138||
पुढे पाहता सर्वही केंदलेसे | अभाग्यास हे दृश्य पाषाण भासे |
अभावे कदा पुण्य गांठी पडेना | जुने ठेवणे मीपणे आकळेना ||139||
जयाचे तया चूकले प्राफ्त नाही | गुणे गोविले जाहले दुःख देही |
गुणावेगळी वृति तेही वळेना | जुने ठेवणे मीपणे आकळेना ||140||
– श्री रामदासस्वामी लिखित मनाचे श्लोक (क्रमशः)
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