महासंकटी सोडिले देव जेणे | प्रतापे बळे आगळा सर्व गूणे |
जयांते स्मरे शैलजा शूलपाणी | नुपेक्षी कदा रामदासाभिमानी ||31||
अहिल्या शिळा राघवे मुक्त केली | पदी लागता दिव्य होऊनि गेली |
जया वर्णिता शीणली वेदवाणी | नुपेक्षी कदा रामदासाभिमानी ||32||
वसे मेरूमांदार हे सृष्टिलीळा | शशी सूर्य तारांगणे मेघमाळा |
चिरंजीव केले जनीं दास दोन्ही | नुपेक्षी कदा रामदासाभिमानी ||33||
उपेक्षा कदा रामरूपी असेना | जिवा मानवा निश्चयो तो वसेना |
शिरी भार वाहेन बोले पुराणी | नुपेक्षी कदा रामदासाभिमानी ||34||
असे हो जया अंतरी भाव जैसा | वसे हो तया अंतरी देव तैसा |
अनन्यासि रक्षीतसे चापपाणी | नुपेक्षी कदा रामदासाभिमानी ||35||
सदा सर्वदा देव सन्नीध आहे | कृपाळूपणे अल्प धारिष्ट पाहे |
सुखानंद आनंद कैवल्यदानी | नुपेक्षी कदा रामदासाभिमानी ||36||
सदा चक्रवाकासि मार्तंड जैसा | उडी घालितो संकटी स्वामी तैसा |
हरीभक्तिचा घाव गाजे निशाणी | नुपेक्षी कदा रामदासाभिमानी ||37||
मना प्रार्थना तूजला एक आहे | रघूराजअंकीत होऊनि राहे |
अवज्ञा कदा हो यदर्थी न कीजे | मना सज्जना राघवी वस्ति कीजे ||38||
जया वर्णिती वेद शास्त्रे पुराणे | जयाचेनि योगे समाधान बाणे |
तयालागि हे सर्व चांचल्य दीजे | मना सज्जना राघवी वस्ति कीजे ||39||
मना पाविजे सर्वही सूख जेथे | अती आदरे ठेविजे लक्ष तेथे |
विवेके कुडी कल्पना पालटीजे | मना सज्जना राघवी वस्ति कीजे ||40||
– श्री रामदासस्वामी लिखित मनाचे श्लोक (क्रमशः)
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