उभा कल्पवृक्षातळी दुःख वाहे | तया अंतरी सर्वदा तेचि आहे |
जनी सज्जनी वाद हा वाढवावा | पुढे मागुता शोक जीवी धरावा ||61||
निजध्यास तो सर्व तूटोनि गेला | बळे अंतरी शोक संताप ठेला |
सुखानंद आनंद भेदे बुडाला | मनी निश्र्चयो सर्व खेदे उडाला ||62||
घरी कामधेनू पुढे ताक मागे | हरीबोध सांडूनि वेवाद लागे |
करी सार चिंतामणी कांचखडे | तया मागता देत आहे उदंडे ||63||
अती मूढ त्या दृढ बुध्दी असेना | अती काम त्या राम चित्ती वसेना |
अती लोभ त्या क्षोभ होईल जाणा | अती वीषयी सर्वदा दैन्यवाणा ||64||
नको दैन्यवाणे जिणे भक्तीऊणे | अती मूर्ख त्या सर्वदा दुःख दूणे |
धरी रे मना आदरे प्रीति रामी | नको वासना हेमधामी विरामी ||65||
नव्हे सार संसार हा घोर आहे | मना सज्जना सत्य शोधूनि पाहे |
जनी वीष खाता पुढे सूख कैंचे | करी रे मना ध्यान या राघवाचे ||66||
घनश्याम हा राम लावण्यरुपी | महाधीर गंभीर पूर्णप्रतापी |
करी संकटी सेवकाचा कुढावा | प्रभाते मनी राम चिंतीत जावा ||67||
बळे आगळा राम कोदंडधारी | महा काळ विक्राळ तोही थरारी |
पुढे मानवा किंकरा कोण केवा | प्रभाते मनी राम चिंतीत जावा ||68||
सुखानंदकारी निवारी भयाते | जनी भक्तीभावे भजावे तयाते |
विवेके त्यजावा अनाचार हेवा | फ्ा्रभाते मनी राम ंिचंतीत जावा ||69||
सदा रामनामे वदा पूर्णकामे | कदा बाधिजेना पदा नित्यनेमे |
मदालस्य हा सर्व सोडूनि द्यावा | प्रभाते मनी राम चिंतीत जावा ||70||
– श्री रामदासस्वामी लिखित मनाचे श्लोक (क्रमशः)
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