भाग-७ : उर्दू-हिंदी-हिंदुस्तानी काव्य :
भाग-७-अ : हिंदी – हिंदुस्तानी काव्य :
झर गए पात , बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?
– निराला
–
मृषा मृत्यु का भय है
जीवन की ही जय है ।
( मृषा : To no purpose )
- महादेवी वर्मा
–
– मेरे शव पर वह रोए , हो जिसके आँसू में हाला
– और चिता पर जाय उँडेला, पात्र न घृत का, पर प्याला
– बच्चन ( ‘मधुशाला’ ) –
दिखते हैं सब से पीछे यहाँ आज वो ही लोग
मरने के दिन जो मौत से आगे निकल गए ।
- नीरज
–
ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते
वो सब के सब परीशाँ हैं, वहाँ पर क्या हुआ होगा ।
- दुष्यंत कुमार
–
तेरे इश्क़ के हाथ से छूट गई
और ज़िंदगी की हँडिया टूट गई ।
- अमृता प्रीतम
–
हल्लीच्या काळातलें कांही काव्य पाहूं या –
UN , तेरा शुक्रिया, तूने
अपनों की पहचान कराई
ज़हर ज़िंदगी का पिलाकर
मौत से जान छुड़ाई ।
- धनराज वंजारी
–
मृत्यु सागर
भरे कर्म-गागर
कभी तो डरो ।
- सुनीता शर्मा
–
मत मना जश्’न दुश्मन की मौत पे
वो भी तो इन्सान है
…..
किसी की राखी, किसी का सिंदूर
आज पहुँचा श्मशान है ।
- रजनी विजय संगला
–
आत्मा का देश
मृत्यु और बुढ़ापा
से शून्य होता ।
- मुरलीलाल दीपक
–
मृत्यु होती है
सतत प्रवाहित
एक घटना ।
–
हिंदुस्तानी ख़याल-गायकीचा संदर्भ देत एका हिंदी बंदिशीचे शब्द पाहूं या. शास्त्रीय संगीतात जरी काव्याला सुरांपेक्षा दुय्यम स्थान असलें तरी, त्यात बंदिशीतील शब्दांचा आधार घेतला जातो. म्हणून हें एक उदाहरण. ही बंदिश पंडित रातंजनकर यांनी रचलेली आहे – (संदर्भ : पं. डॉ. राम देशपांडे) –
‘अंतसमय काम न आया ।’
*
(पुढे चालू ) ……
— सुभाष स. नाईक
Subhash S. Naik
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