[ उर्दू-हिंदी-हिंदुस्तानी काव्य : ( पुढे चालू ) ]
उर्दू काव्य:
प-ए-फ़ातहा कोई आए क्यों, कोई चार फूल चढ़ाए क्यों
कोई आके शम्मा जलाए क्यों, मैं वो बेकसी का मज़ार हूँ ।
- बहादुरशाह ज़फ़र
( ही गझल ज़फ़र यांची आहे, असें म्हटलें जातें . पण हल्ली ,
ही वास्तवात मुश्तर खैराबादी यांची आहे, असें मानतात. ) .
[ प-ए-फ़ातहा : फ़ातहा ‘पढण्या’साठी (वाचण्यासाठी / म्हणण्यासाठी )
फातहा : मृतासाठी / मृतात्म्यासाठी करण्यांत येणारी प्रार्थना
मज़ार : समाधी / कबर ]
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हो गई शह्.र शह्.र रुसवाई
ऐ मेरी मौत, तू भली आई ।
- मीर
–
मौत का एक दिन मुअय्यन है
नींद क्यों रातभर नहीं आती ?
- ग़ालिब
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लाई हयात, आए ; क़ज़ा ले चली, चले
अपनी ख़ुशी न आए , न अपनी ख़ुशी चले ।
( क़ज़ा : मृत्यू ; हयात : जीवन )
- ज़ौक
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मौत से क्यूँ इतनी दहशत, जान क्यूँ इतनी अज़ीज़
मौत आने के लिये है, जान जाने के लिये है ।
- वफ़ा
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क़रीब मौत खड़ी है, ज़रा ठहर जाओ
क़ज़ा से आँख लड़ी है, ज़रा ठहर जाओ ।
- सैफ़ुद्दीन सैफ़
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क़ैदे हस्ती से कब नजात ‘जिगर’
मौत आई अगर हयात आई ।
( नजात : मुक्ती )
- जिगर मुरादावादी
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मौत क्या है, ज़माने को समझाऊँ क्या
इक मुसाफ़िर को रस्ते में नींद आ गई ।
- दिल लखनवी
–
बेदम हूँ और जीने से बेज़ार हूँ मैं
बेज़ार हूँ और मरने को तैयार हूँ मै
तैयार हूं लेकिन नहीं मरता ‘बेद
ये कैसी कश्मकश में गिरफ़्तार हूँ मैं ।
( दम : श्वास )
- बेदम वारसी
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क्या पता कब कहाँ से मारेगी ?
बस कि मैं ज़िंदगी से डरता हूँ
मौत का क्या है, एक बार मारेगी ।
- गुलज़ार
–
सिर्फ़ मिट्टी है ये मिट्टी
मिट्टी को मिट्टी में दफ़नाते हुये
रोते क्यों हो ?
- गुलज़ार
–
उससे ज़िंदगी ले चली है, सवारी मौत की
रास्ता पार इधर करें या उधर करें ।
- हसन कमाल
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हसरतों के हाथ से जो आजतक दफ़ना गए
उन मज़ारों की दहकती सिसकियाँ दे दो मुझे ।
- इलाही जमादार
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दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिये ।
- शहरयार
प्रेमाच्या संदर्भात लिहिलेल्या काव्यामध्येही असा मृत्यूचा उल्लेख येतो.
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अशी अनेक अन्य उदाहरणें हिंदी-हिंदुस्तानी-उर्दूमध्ये मिळतात.
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— सुभाष स. नाईक
Subhash S. Naik
(पुढे चालू) …..
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