असे सार साचार ते चोरलेसे | इही लोचनी पाहता दृश्य भासे |
निराभास निर्गूण ते आकळेना | अहंतागुणे कल्पिताही कळेना ||171||
स्फुरे विषयी कल्पना ते अविद्या | स्फुरे ब्रध् रे जाण माया सुविद्या |
मुळी कल्पना दो रूपे तेचि जाली | विवेके तरी सस्वरूपी मिळाली ||172||
स्वरूपी उदेला अहंकार राहो | तेणे सर्व आच्छादिले व्योम पाहो |
दिशा पाहता ते निशा वाढताहे | विवेके विचारे विवंचूनि पाहे ||173||
जया चक्षुने लक्षिता लक्षवेना | भवा भक्षिता रक्षिता रक्षवेना |
क्षयातीत तो अक्षयी मोक्ष देतो | दयादक्ष तो सक्षिने पक्ष घेतो ||174||
विधी निर्मिता लीहितो सर्व भाळी | परी लीहिता कोण त्याचे कपाळी |
हरू जाळितो लोक संहारकाळी | परी शेवटी शंकरा कोण जाळी ||175||
जगी द्वादशादित्य ते रूद अकःा| असंख्यात संख्या करी कोण शकःा |
जगी देव धुंडाळिता आढळेना | जनी मख्य तो कोण कैसा कळेना ||176||
तुटेना फुटेना कदा देवराणा | चळेना ढळेना कदा दैन्यवाणा |
कळेना कळेंना कदा लोचनासी | वसेना दिसेना तो जनी मीपणाशी ||177||
जया मानला देव तो पूजिताहे | परा देव शोधूनि कोणी न पाहे |
जगी पाहता देव कोटयानकोटी | जया मानली भक्ती जे तेचि मोठी ||178||
तिन्ही लोक जेथून निर्माण जाले | तया देवरायासि कोणी न बोले |
जगी थोरला देव तो चोरलासे | सदगुरूवीण तो सर्वथाही न दीसे ||179||
गुरू पाहतां पाहतां लक्ष कोटी | बहूसाल मंत्रावळी शक्ति मोंठी |
मनी कामना चेटके घातमाता | जनी व्यर्थ रे तो नव्हे मुक्तिदाता ||180||
– श्री रामदासस्वामी लिखित मनाचे श्लोक (क्रमशः)